पंचकोश विज्ञान क्या है एवं विद्यार्थियों के व्यक्तित्व निर्माण में पंचकोशों की क्या भूमिका रहती है आज इस कौशल का अध्ययन करेंगे….
योग की धारणा के अनुसार मानव का अस्तित्व पाँच भागों में बंटा है जिन्हें पंचकोश कहते हैं। ये कोश एक साथ विद्यमान अस्तित्व के विभिन्न तल समान होते हैं। विभिन्न कोशों में चेतन, अवचेतन तथा अचेतन मन की अनुभूति होती है। प्रत्येक कोश का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध होता है। वे एक दूसरे को प्रभावित करती और होती हैं।
ये पाँच कोश हैं –
अन्नमय कोश – अन्न तथा भोजन से निर्मित। शरीर और मस्तिष्क।
प्राणमय कोश – प्राणों से बना।
मनोमय कोश – मन से बना।
विज्ञानमय कोश – अंतर्ज्ञान या सहज ज्ञान से बना।
आनंदमय कोश – आनंदानुभूति से बना।
योग मान्यताओं के अनुसार चेतन और अवचेतन मान का संपर्क प्राणमय कोश के द्वारा होता है[1]। स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा लिखित स्वर योग के तहत कोशों के मनोवैज्ञानिक आयाम, शारीरिक दशा और अनुभूति के प्रकार का उल्लेख किया गया।
योग की धारणा के अनुसार मानव का अस्तित्व पाँच भागों में बंटा है जिन्हें पंचकोश कहते हैं। ये कोश एक साथ विद्यमान अस्तित्व के विभिन्न तल समान होते हैं। विभिन्न कोशों में चेतन, अवचेतन तथा अचेतन मन की अनुभूति होती है। प्रत्येक कोश का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध होता है। वे एक दूसरे को प्रभावित करती और होती हैं।
ये पाँच कोश हैं –
अन्नमय कोश – अन्न तथा भोजन से निर्मित। शरीर और मस्तिष्क।
प्राणमय कोश – प्राणों से बना।
मनोमय कोश – मन से बना।
विज्ञानमय कोश – अंतर्ज्ञान या सहज ज्ञान से बना।
आनंदमय कोश – आनंदानुभूति से बना।
योग मान्यताओं के अनुसार चेतन और अवचेतन मान का संपर्क प्राणमय कोश के द्वारा होता है[1]। स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा लिखित स्वर योग के तहत कोशों के मनोवैज्ञानिक आयाम, शारीरिक दशा और अनुभूति के प्रकार का उल्लेख किया गया।